इतिहास - बीते पलों का दर्पण
वो मृगतृष्णा का मृग है जीता-जागता सा
मेरी प्यास खु़द बुझाना चाहता है ।
भाग रहा है दूर मुझसे पर
मेरी निकटता का एहसास चाहता है ।।
बरसों बीते दूरियों में
अब परछाई भी गु़म हो जाती है ।
मन की आहट सुन मुस्काता था
अब आहें भी दम तोड जाती हैं ।।
बंजर मरु-भूमि में नया अंकुर फूटा
कस्तूर कि सुरभि ने मृग को छुआ है ।
राही के संग चल पडा है वो
अब प्यास की चिंता नहीं, भागीरथी का जन्म हुआ है ।।
2 comments:
ab miyaan samajh aayi hai, sahi hai
didn't know you wrote poems too!! when did this happen...loved this peom!!! good going!
neha
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