28 Feb 2007

उद्‍गम - जीवन-झर की शुरुआत

रात की चादर फैली है तारों की ओढनी ओढे
बिखरे बादल कालिख़ से, पुते हुए हैं ।
सब कुछ ठहर सा जाता है, जैसे प्राण खींच लिए हों तन से
दूर लेकिन इक आशा कि किरण नज़र आती है ।।

फिर भोर फूटी है नित नये अरमानों का क़ाफिला लेकर
मन क्‍यों , अँधेरे को ढूँढता है उजालों में ।
शायद रोशनी जो दिल में तस्‍वीर बनाती है
भरी दुपहरी भी घोर अंधकार का एहसास कराती है ।।

दिन से रात के सफ़र का देखो अद्‍भुत् दृश्‍य
संध्‍या की वेला रवि की परछाई बन जाती है ।
छूकर गुज़री है आग के गोले को
जलने का मज़ा न मिला, सितारों कि टिमटिम उसपर खिलखिलाती है ।।

26 Feb 2007

इतिहास - बीते पलों का दर्पण

वो मृगतृष्णा का मृग है जीता-जागता सा
मेरी प्‍यास खु़द बुझाना चाहता है ।
भाग रहा है दूर मुझसे पर
मेरी निकटता का एहसास चाहता है ।।

बरसों बीते दूरियों में
अब परछाई भी गु़म हो जाती है ।
मन की आहट सुन मुस्काता था
अब आहें भी दम तोड जाती हैं ।।

बंजर मरु-भूमि में नया अंकुर फूटा
कस्‍तूर कि सुरभि ने मृग को छुआ है ।
राही के संग चल पडा है वो
अब प्‍यास की चिंता नहीं, भागीरथी का जन्‍म हुआ है ।।

10 Feb 2007

itihaas

woh mrigtrishna kaa mrig hai jeeta jaagta sa,
meri pyas khud bujhaana chaahta hai..
bhaag raha hai door mujhse par,
meri nikat-ta kaa ehsaas chaahta hai...

barson beete dooriyon mein..
ab parchhai bhi gum ho jaati hai..
mann ki aahat ko sunkar muskaata thha..
ab aahein bhi thhak-kar,dum tod jaati hain..

banjar maru-bhoomi mein naya ankur foota,
kastur ki surabhi ne mrig ko chhooaa hai ..
raahi ke sang chal pada hai woh,
ab pyaas ki chinta nahi, bhaagirathi kaa janam hua hai..